मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

ॐ तथा श्रीयंत्र में सम्बन्ध


ॐ  ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद नाद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है। इसे प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है "प्रकर्षेण नूयते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणवः"
प्रणव शब्द का अर्थ है, वह शब्द जिससे ईश्वर की भली भांति स्तुति की जाये या ऐसा अक्षर जिसका कभी क्षरण ना हो। सरल अर्थो में कहा जाये तो प्रणवाक्षर परमेश्वर का प्रतीक है।

परिचय तथा अर्थ :
वैसे तो इसका महात्म्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा योग दर्शन में मिलता है परन्तु खासकर माण्डुक्य उपनिषद में इसी प्रणव शब्द का बारीकी से समझाया गया है  |
माण्डुक्य उपनिषद  के अनुसार यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म। प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है, जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. तथा यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिक भी है |

कठोपनिषद में लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है। उसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार होता है। श्रीमद्भागवत गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है।माण्डूक्योपनिषद में भूत, भवत् या वर्तमान और भविष्य–त्रिकाल–ओंकारात्मक ही कहा गया है।

इसे अनहद नाद भी कहा गया है। यह एक ऐसी ध्वनि होती है जो उत्पन्न नहीं की जाती, स्वतः गूंजती रहती है। इसे स्थूल कानों से नहीं सुना जा सकता। ये ध्वनि ब्रह्मांड में हर समय हर जगह गूंजती रहती है।
तपस्वी और योगीजन जब ध्यान की गहरी अवस्था में उतरने लगते है तो यह नाद (ध्वनी) हमारे भीतर तथापि बाहर कम्पित होती स्पष्ट प्रतीत होने लगती है। साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है।

हाल ही में हुए प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर सूर्य से आने वाली
रश्मियों में अ उ म की ध्वनी होती है इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। ॐ को केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानना उचित नही । जिस प्रकार सूर्य, वर्षा, जल तथा प्रकृति आदि किसी से भेदभाव नही करती, उसी प्रकार ॐ, वेद आदि भी समस्त मानव जाती के कल्याण हेतु है। यदि कोई इन्हें  केवल सनातनियों के ईश्वरत्व का प्रतिक मानें  तो इस हिसाब से सूर्य तथा समस्त ब्रह्माण्ड भी केवल हिन्दुओं का ही हुआ ना ? क्योकि सूर्य व ब्रह्मांड सदैव ॐ का उद्घोष करते है।

ॐ की विवेचना :
योगशास्त्र में लिखा हुआ है तस्य वाचकः प्रणवः अर्थात् उस परमेश्वर का वाचक प्रणव 'ॐ' है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। ॐ अक्षर है इसका क्षरण अथवा विनाश नहीं होता।

छान्दोग्योपनिषद्  में ऋषियों ने कहा है -
"ॐ इत्येतत् अक्षरः" अर्थात् "ॐ अविनाशी, अव्यय एवं क्षरण रहित है।" ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है। मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली। ब्राह्मण ग्रन्थ में उल्लेख है कि जो "कुश" के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हज़ार बार ॐ रूपी मंत्र का जाप करता है, उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं।

"सिद्धयन्ति अस्य अर्था: सर्वकर्माणि च"

श्रीमद्मागवत् में ॐ के महत्व को कई बार रेखांकित किया गया है। श्री गीता जी के आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है। ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है। अ उ म्। "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ में प्रयुक्त "अ" तो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है, वहीं "उ" उड़ने का अर्थ देता है, जिसका मतलब है "ऊर्जा" सम्पन्न होना। किसी ऊर्जावान मंदिर या तीर्थस्थल जाने पर वहाँ की अगाध ऊर्जा ग्रहण करने के बाद व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को आकाश में उड़ता हुआ देखता है। मौन का महत्व ज्ञानियों ने बताया ही है। गीता जी में परमेश्वरश्रीकृष्ण ने मौन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए स्वयं को मौनका ही पर्याय बताया है —
"मौनं चैवास्मि गुह्यानां"


"ध्यान बिन्दुपनिषद्" के अनुसार ॐ मन्त्र की विशेषता यह है कि पवित्र या अपवित्र सभी स्थितियों में जो इसका जप करता है, उसे लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस तरह कमल-पत्र पर जल नहीं ठहरता है, ठीक उसी तरह जप-कर्ता पर कोई कलुष नहीं लगता। सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। बौद्ध-दर्शन में "मणिपद्मेहुम" का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। इस मंत्र के अनुसार ॐ को "मणिपुर" चक्र में अवस्थित माना जाता है। यह चक्र दस दल वाले कमल के समान है। जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया है।

श्री गुरु नानकदेव ने भी ॐ के महत्व को प्रतिपादित करते हुए लिखा है —
इक ओंकार सतनाम,
कर्ता पुरुष निरभौं,
निर्वेर अकालमूर्त… …

अर्थात एक ओंकार ही सत्यनाम है। ॐ सत्यनाम जपनेवाला पुरुष निर्भय, बैर-रहित एवं "अकाल-पुरुष के" सदृश हो जाता है।

वैज्ञानिक प्रयोगों का विवरण :

आधुनिक काल में  Hans Jenny (1904) जिन्हें cymatics का जनक कहा जाता है, ने ॐ ध्वनी से प्राप्त तरंगों पर कार्य किया ।
 Hans Jenny ने जब ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया तब उन्हें वृताकार रचनाएँ तथा उसके मध्य कई निर्मित त्रिभुज दिखाई दिए जो आश्चर्यजनक रूप से श्री यन्त्र से मेल खाते थे ।

इसके पश्चात तो बस जेनी आश्चर्य से भर गये और उन्होंने संस्कृत के प्रत्येक अक्षर (52 अक्षर होते है जैसे अंग्रेजी में 26 है) को इसी प्रकार रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित किया तब उन्हें उसी अक्षर की रेत कणों द्वारा लिखित छवि प्राप्त हुई ।

सूर्य किरणों से उत्पन्न होने वाली ॐ की ध्वनि को सुनने के लिए कृपया नीचे दी गयी लिंक्स पर क्लिक करें-
https://youtu.be/TfoRAdDolqA
https://youtu.be/ZZQcLJjpdrI

निष्कर्ष :
1. ॐ ध्वनी को रेत के बारीक़ कणों पर स्पंदित करने पर प्राप्त छवि --> श्री यन्त्र
2. जैसा की हम जानते है श्री यन्त्र संस्कृत के 52 अक्षरों को व्यक्त करता है |
3. ॐ -->श्री यन्त्र-->संस्कृत वर्णमाला
4. ॐ --> संस्कृत

संस्कृत के संदर्भ में हमने सदैव यही सुना कि संस्कृत ईश्वर प्रदत्त भाषा है ।
श्रीब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की उत्पति के समय संस्कृत की वर्णमाला का अविर्भाव हुआ। यह बात इस प्रयोग से स्पस्ट है कि ब्रह्म (ॐ मूल) से ही संस्कृत की उत्पति हुई ।
इस प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृत को देव भाषा या देववाणी क्यों कहा जाता है !अब समझ में आ गया होगा संस्कृत क्यों देव भाषा/ देव वाणी कही जाती है !!


2 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ एवं श्री यंत्र!
    अपने आप में पूरी सृष्टि को संजोए हुए गूढ़तम विषय!!
    इनका इतनी सरल और सरस शब्दों में वर्णन करना अत्यन्त सराहनीय है!!
    ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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